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Thursday, 8 July 2021
This Terrifying Brazilian Island Has the
Highest Concentration of Venomous
Snakes Anywhere in the World
Brazil’s Ilha de Queimada Grande is the only home of one of the world’s
deadliest, and most endangered, snakes
स्नेक आइलैंड - फोटो : सोशल मीडिया
हमारे आसपास ऐसी कई जगहें मौजूद हैं, जो रोमांच, रहस्य और अजूबों से भरी हुई हैं। कई जगह ऐसी हैं, जहां प्रकृति की खूबसूरती देखने को मिलती है, तो वहीं कई जगह ऐसी भी हैं जो जोखिमों से भरी हुई हैं। क्या आपने कभी ऐसी जगहों के बारे में सुना है, जहां इंसानों का नहीं बल्कि सांपों का राज चलता है। अगर नहीं, तो आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां जाना खतरों से खाली नहीं है। इस जगह पर इतने सांप रहते हैं कि अगर कोई इंसान वहां गलती से भी चला जाए, तो उसके जिंदा वापस आने की उम्मीद नहीं की जा सकती है।
स्नेक आइलैंड - फोटो : सोशल मीडिया
दरअसल, यह खतरनाक जगह ब्राजील में है, जिसे 'स्नेक आइलैंड' के नाम से जाना जाता है। इस आइलैंड का वास्तविक नाम 'इलाहा दा क्यूइमादा' है। वैसे दूर से तो देखने में यह आइलैंड काफी खूबसूरत लगता है, लेकिन आपको जानकर यह हैरानी होगी कि दुनिया के सबसे खतरनाक सांप इसी आइलैंड पर पाए जाते हैं।
स्नेक आइलैंड - फोटो : सोशल मीडिया
स्नेक आइलैंड में वाइपर प्रजाति के भी सांप मिलते हैं। इस प्रजाति के सांपों के पास उड़ने की भी क्षमता होती है। कहते हैं कि इन सांपों का जहर इतना खतरनाक होता है कि इंसान का मांस तक गला देता है।
बरमूडा ट्राएंगल या उत्तर अटलांटिक महासागर (नार्थ अटलांटिक महासागर) का वह हिस्सा, जिसे 'डेविल्स ट्राएंगल' या 'शैतानी त्रिभुज' भी कहा जाता था, आखिरकार इस 'शैतानी त्रिभुज' की पहेली को सुलझा लिया गया है। साइंस चैनल वाट ऑन अर्थ (What on Earth?) पर प्रसारित की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अजीब तरह के बादलों की मौजूदगी के चलते ही हवाई जहाज और पानी के जहाजों के गायब होने की घटनाएं बरमूडा ट्राएंगल (त्रिकोण) के आस पास देखने को मिलती हैं।
वैज्ञानिक तथ्य
इन बादलों को हेक्सागॉनल क्लाउड्स (Hexagonal clouds) नाम दिया गया है जो हवा में एक बम विस्फोट की मौजूदगी के बराबर की शक्ति रखते हैं और इनके साथ 170 मील प्रति घंटा की रफ़्तार वाली हवाएं होती हैं। ये बादल और हवाएं ही मिलकर पानी और हवा में मौजूद जहाजों से टकराते हैं और फिर वे कभी नहीं मिलते। 5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला ये इलाका पिछले कई सौ सालों से बदनाम रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बेहद तेज रफ्तार से बहती हवाएं ही ऐसे बादलों को जन्म देती हैं। ये बादल देखने में भी बेहद अजीब रहते हैं और एक बादल का दायरा कम से कम 45 फीट तक होता है। इनके आकार के कारण इन्हें हेक्सागोनल क्याउड्स (षटकोणीय बादल) कहा जाता है।
कोलंबस ने सबसे पहले इसे देखा
बरमूडा ट्राएंगल के बारे में सबसे पहले सूचना देने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस ही थे। कोलंबस ही वह पहले शख्स थे जिनका सामना बरमूडा ट्रायएंगल से हुआ था। उन्होंने अपने लेखों में इस त्रिकोण में होने वाली गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि जैसे ही वह बरमूडा त्रिकोण के पास पहुंचे, उनके कम्पास (दिशा बताने वाला यंत्र) ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद क्रिस्टोफर कोलंबस को आसमान में एक रहस्यमयी आग का गोला दिखाई दिया, जो सीधा जाकर समुद्र में गिर गया।
बरमूडा त्रिकोण की स्थित और भिन्न-भिन्न आकार
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी के बीच फैली जगह, जोकि एक काल्पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोण अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है। इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, प्यूटो रिको को स्पर्श करते हैं तथा बरमूडा ट्राएंगल - स्टेट्स ऑफ फ्लोरिडा, प्यूर्टोरिको एवं अटलांटिक महासागर के बीच स्थित बरमूडा द्वीप के मध्य स्थित है। ज्यादातर दुर्घटनाएं त्रिकोण की दक्षिणी सीमा के पास होती है, जो बहामास और फ्लोरिडा के पास स्थित है।
बरमूडा त्रिकोण का इतिहास
बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। सबसे पहले 1872 में जहाज द मैरी बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। लेकिन बारमूडा ट्राएंगल का रहस्य दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आया, जब 16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स. सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था।
इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पांच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का जिक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने की घटना को काफी गंभीरता से लिया गया। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि बरमूडा त्रिकोण में गायब हो रहे विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहां हैं, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है। जलसेना के अधिकारियों के हवाले ये भी कहा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए।
यह पहला लेख था जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परलौकिक शक्ति यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ बताया गया। 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में बरमूडा त्रिकोण पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इस पर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गई। वहीं बारमूडा त्रिकोण में विमान और जहाज के लापता होने का सिलसिला जारी रहा।
बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ जहाज-
1872 में जहाज 'द मैरी सैलेस्ट' बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसका आजतक कुछ पता नहीं।
1945 में नेवी के पांच हवाई जहाज बरमूडा त्रिकोण में समा गए। ये जहाज फ्लाइट-19 के थे।
1947 में सेना का सी-45 सुपरफोर्ट जहाज़ बरमूडा त्रिकोण के ऊपर रहस्यमय तरीके से गायब हो गया।
1948 में जहाज ट्यूडोर त्रिकोण में खो गया। इसका भी कुछ पता नहीं। (डीसी-3)
1950 में अमेरिकी जहाज एसएस सैंड्रा यहां से गुजरा, लेकिन कहां गया कुछ पता नहीं।
1952 में ब्रिटिश जहाज अटलांटिक में विलीन हो गया। 33 लोग मारे गए, किसी का शव तक नहीं मिला।
1962 में अमेरिकी सेना का केबी-50 टैंकर प्लेन बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से गुजरते वक्त अचानक लापता हुआ।
1972 में जर्मनी का एक जहाज त्रिकोण में घुसते ही डूब गया। इस जहाज़ का भार 20 हज़ार टन था।
1997 में जर्मनी का विमान बरमूडा त्रिकोण में घुसते ही कहां गया, कुछ पता नहीं।
द मैरी सैलेस्ट : बरमूडा त्रिकोण से जुड़ी सबसे अधिक रहस्यमय घटना को `मैरी सैलेस्ट´ नामक जहाज के साथ जोड़कर देखा जाता है। 5 नवम्बर, 1872 को यह जहाज न्यूयॉर्क से जिनोआ के लिए चला, लेकिन वहां कभी नहीं पहुंच पाया। बाद में ठीक एक माह के उपरान्त 5 दिसम्बर, 1872 को यह जहाज़ अटलांटिक महासागर में सही-सलामत हालत में मिला, परन्तु इस पर एक भी व्यक्ति नहीं था। अन्दर खाने की मेज सजी हुई थी, किन्तु खाने वाला कोई न था। इस पर सवार सभी व्यक्ति कहां चले गए? खाने की मेज किसने, कब और क्यों लगाई? ये सभी सवाल आज तक एक अनसुलझी पहेली ही बने हुए हैं।
फ्लाइट 19 : इसी प्रकार अमेरिकी नौसेना में टारपीडो बमवर्षक विमानों के दस्ते फ्लाइट 19 के पांच विमानों ने 5 दिसम्बर, 1945 को लेफ्टिनेंट चार्ल्स टेलर के नेतृत्व में 14 लोगों के साथ `फोर्ट लॉडरडेल´, फ्लोरिडा से इस क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरी और फिर ये लोग कभी वापिस नहीं लौट सके जिसमें पांच तारपीडो यान नष्ट हो गए थे। इस स्थान पर पहुंचने पर लेफ्टिनेंट टेलर के कंपास ने काम करना बंद कर दिया था। `फ्लाइट 19´ के रेडियो से जो अन्तिम शब्द सुने गए वे थे, 'हमें नहीं पता हम कहां हैं, सब कुछ गलत हो गया है, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नज़र नहीं आ रहा है। समुद्र वैसा नहीं दिखता जैसा कि दिखना चाहिए। हम नहीं जानते कि पश्चिम किस दिशा में है। हमें कोई भी दिशा समझ में नहीं आ रही है। हमें अपने अड्डे से 225 मील उत्तर पूर्व में होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि.... और उसके बाद आवाज आनी बंद हो गई।'
पुराने ज़माने में कई विशाल काय जीव जंतु हुआ करते थे जैसे की डायनासोर आदि किंतु वह प्राकृतिक आपदाओं के कारण इस दुनिया से विलुप्त हो गए और इन्ही की तरह और भी कई जीव व पक्षी इस दुनिया में ऐसे थे है इस दुनिया से विलुप्त हो चुके है | तो आइए जानते है दुनिया से विलुप्त हो चुके कुछ विशाल जीवों के बारे में ( extinct species of animals in hindi )
अर्जेंटाविस ( Argentavis )
अर्जेंटाविस ( Argentavis ) आज से 6,00,00,000 साल पहले विलुप्त हो चुके है | यह गुसैल पक्षी, पक्षियों की प्रजाति में सबसे बड़ा पक्षी था जो हवा में उड़ सकता था | इस विशाल पक्षी का वज़न 75 KG तक और पंखों का फ़ैलाव लगभग 16-19 ft. तक का हुआ करता था | वैज्ञानिको के मुताबिक ये पक्षी क्योंकि आकार में काफी बड़ा हुआ करता था जिसकी वजह से इसका केवल एक ही जगह से उड़ पाना संभव नहीं हो पता था और इन पक्षियों को उड़ान भरने के लिए ढ़लान वाली जगह चाहिए होती थी | साथ ही इस पक्षी की बनावट ऐसी थी की वे इतना बड़ा और भारी होने बाद भी उड़ पता था |
इंटेलोदोंट्स ( Entelodonts )
इंटेलोदोंट्स ( Entelodonts ) आज से 15,00,000-37,00,000 साल पहले विलुप्त हो चुके है | ये जीव ज़्यादातर उत्तरी एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में पाए जाते थे | इंटेलोदोंट्स ( Entelodonts ) एक काफी विशाल जीव था | इसके एक छोटे बच्चे का वज़न 150 KG तक हुआ करता था और एक पूरी तरह से विकसित इंटेलोदोंट्स का वज़न 900-1,000 KG तक होता था | इन जानवरों की हड्डियाँ काफी मजबूत हुआ करती थी जिसकी मदद से ये किसी भी प्रकार के हमले के लिए ये तैयार रहते थे | इनके विलुप्त होने की वजह भी वातावरण में आए बदलाव और सूखा पड़ने हुई
हास्ट ईगल ( Haast’s Eagle )
हास्ट ईगल ( Haast’s Eagle ) साल 1400 में विलुप्त हो चुका है | नूज़ीलैण्ड के पास पाया जाने वाला ये जीव आज पूरी तरह से विलुप्त है और इन्हे हास्ट ईगल ( Haast’s Eagle ) कहाँ जाता है | वहां के स्थानीय लोगो के मुताबिक ये पक्षी आज की चीलों के मुकाबले में लगभग 2X हुआ करता था | इस पक्षी का वज़न 17 KG और इसके पंखों का आकार लगभग 3 Metre तक हुआ करते थे | इस पक्षी के एक डीएनए ( DNA ) रिपोर्ट ये साबित हुआ था की आज से लगभग 10-16 लाख साल पहले ये पक्षी इवॉल्वे हुए थे ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाली एक चील से | आज से 600-700 साल पहले इस पक्षी के विलुप्त होने का कारण इंसानों का शिकार करना बताया जा रहा है
फाबेरॉयस ( Phoberomys )
फाबेरॉयस ( Phoberomys ) आज से 80,00,000 साल पहले विलुप्त हो चुके है | यह जीव एक तरह से बड़े चूहे ही है ऐसा इसलिए क्योंकि क्योंकि उस समय पर चूहे आकार में काफी बड़े हुए करते थे | इन चूहों को वज़न तक़रीबन 700 KG तक हुआ करता था और 4 फूट तक लम्बे हुआ करते थे | ये जीव अपना पेट भरने के लिए कुछ पेड़ पौधे और फलो पर निर्भर किया करते थे दूसरे जानवरों से अपना बचाव करने के लिए ये अपने दाँतों का इस्तेमाल करते थे |
Titanoboa(तितनोबोअ )
Titanoboa आज से 6,00,00,000 साल पहले इस दुनिया से विलुप्त हो चुके है | ये सांप इतने ज्यादा बड़े हुआ करते थे की ये आसानी से 3-4 इंसानों को एक ही बार में निकल सकते थे | एक विकसित Titanoboa का वजन तक़रीबन 1,300 KG तक हुआ करता था और इस प्रजाति के साँपो की लंबाई 40-50 फूट तक हुआ करती थी | ये प्रजाति ज्यादा तर गर्म इलाकों पाई जाती थी | ये सांप ज़हरीले तो नहीं होते थे लेकिन लेकिन ये अपने शिकार का दम घोट कर उन्हें मर कर निगल जाते थे | इनके विलुप्त होने की सटीक जानकारी तो आज तक किसी को भी नहीं पता लेकिन अनुमान के हिसाब से इनके विलुप्त होने की वजह वातावरण में बदलाव ही है |