by- rohit vishwakarma
सुलझ गया बरमूडा ट्राएंगल का रहस्य!
बरमूडा ट्राएंगल या उत्तर अटलांटिक महासागर (नार्थ अटलांटिक महासागर) का वह हिस्सा, जिसे 'डेविल्स ट्राएंगल' या 'शैतानी त्रिभुज' भी कहा जाता था, आखिरकार इस 'शैतानी त्रिभुज' की पहेली को सुलझा लिया गया है। साइंस चैनल वाट ऑन अर्थ (What on Earth?) पर प्रसारित की गई एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अजीब तरह के बादलों की मौजूदगी के चलते ही हवाई जहाज और पानी के जहाजों के गायब होने की घटनाएं बरमूडा ट्राएंगल (त्रिकोण) के आस पास देखने को मिलती हैं।
- वैज्ञानिक तथ्य
इन बादलों को हेक्सागॉनल क्लाउड्स (Hexagonal clouds) नाम दिया गया है जो हवा में एक बम विस्फोट की मौजूदगी के बराबर की शक्ति रखते हैं और इनके साथ 170 मील प्रति घंटा की रफ़्तार वाली हवाएं होती हैं। ये बादल और हवाएं ही मिलकर पानी और हवा में मौजूद जहाजों से टकराते हैं और फिर वे कभी नहीं मिलते। 5 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला ये इलाका पिछले कई सौ सालों से बदनाम रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक बेहद तेज रफ्तार से बहती हवाएं ही ऐसे बादलों को जन्म देती हैं। ये बादल देखने में भी बेहद अजीब रहते हैं और एक बादल का दायरा कम से कम 45 फीट तक होता है। इनके आकार के कारण इन्हें हेक्सागोनल क्याउड्स (षटकोणीय बादल) कहा जाता है।
- कोलंबस ने सबसे पहले इसे देखा
बरमूडा ट्राएंगल के बारे में सबसे पहले सूचना देने वाले क्रिस्टोफर कोलंबस ही थे। कोलंबस ही वह पहले शख्स थे जिनका सामना बरमूडा ट्रायएंगल से हुआ था। उन्होंने अपने लेखों में इस त्रिकोण में होने वाली गतिविधियों का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि जैसे ही वह बरमूडा त्रिकोण के पास पहुंचे, उनके कम्पास (दिशा बताने वाला यंत्र) ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद क्रिस्टोफर कोलंबस को आसमान में एक रहस्यमयी आग का गोला दिखाई दिया, जो सीधा जाकर समुद्र में गिर गया।
- बरमूडा त्रिकोण की स्थित और भिन्न-भिन्न आकार
संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिण पूर्वी अटलांटिक महासागर के अक्षांश 25 डिग्री से 45 डिग्री उत्तर तथा देशांतर 55 से 85 डिग्री के बीच फैले 39,00,000 वर्ग किमी के बीच फैली जगह, जोकि एक काल्पनिक त्रिकोण जैसी दिखती है, बरमूडा त्रिकोण अथवा बरमूडा त्रिभुज के नाम से जानी जाती है। इस त्रिकोण के तीन कोने बरमूडा, मियामी तथा सेन जआनार, प्यूटो रिको को स्पर्श करते हैं तथा बरमूडा ट्राएंगल - स्टेट्स ऑफ फ्लोरिडा, प्यूर्टोरिको एवं अटलांटिक महासागर के बीच स्थित बरमूडा द्वीप के मध्य स्थित है। ज्यादातर दुर्घटनाएं त्रिकोण की दक्षिणी सीमा के पास होती है, जो बहामास और फ्लोरिडा के पास स्थित है।
- बरमूडा त्रिकोण का इतिहास
बरमूडा ट्रायएंगल अब तक कई जहाजों और विमानों को अपने आगोश में ले चुका है, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। सबसे पहले 1872 में जहाज द मैरी बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। लेकिन बारमूडा ट्राएंगल का रहस्य दुनिया के सामने पहली बार तब सामने आया, जब 16 सितंबर 1950 को पहली बार इस बारे में अखबार में लेख भी छपा था। दो साल बाद फैट पत्रिका ने ‘सी मिस्ट्री एट अवर बैक डोर’ शीर्षक से जार्ज एक्स. सेंड का एक संक्षिप्त लेख भी प्रकाशित किया था।
इस लेख में कई हवाई तथा समुद्री जहाजों समेत अमेरिकी जलसेना के पांच टीबीएम बमवर्षक विमानों ‘फ्लाइट 19’ के लापता होने का जिक्र किया गया था। फ्लाइट 19 के गायब होने की घटना को काफी गंभीरता से लिया गया। इसी सिलसिले में अप्रैल 1962 में एक पत्रिका में प्रकाशित किया गया था कि बरमूडा त्रिकोण में गायब हो रहे विमान चालकों को यह कहते सुना गया था कि हमें नहीं पता हम कहां हैं, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नजर नहीं आ रहा है। जलसेना के अधिकारियों के हवाले ये भी कहा गया था कि विमान किसी दूसरे ग्रह पर चले गए।
यह पहला लेख था जिसमें विमानों के गायब होने के पीछे किसी परलौकिक शक्ति यानी दूसरे ग्रह के प्राणियों का हाथ बताया गया। 1964 में आरगोसी नामक पत्रिका में बरमूडा त्रिकोण पर लेख प्रकाशित हुआ। इस लेख को विसेंट एच गोडिस ने लिखा था। इसके बाद से लगातार सम्पूर्ण विश्व में इस पर इतना कुछ लिखा गया कि 1973 में एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका में भी इसे जगह मिल गई। वहीं बारमूडा त्रिकोण में विमान और जहाज के लापता होने का सिलसिला जारी रहा।
बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ जहाज-
1872 में जहाज 'द मैरी सैलेस्ट' बरमूडा त्रिकोण में लापता हुआ, जिसका आजतक कुछ पता नहीं।
1945 में नेवी के पांच हवाई जहाज बरमूडा त्रिकोण में समा गए। ये जहाज फ्लाइट-19 के थे।
1947 में सेना का सी-45 सुपरफोर्ट जहाज़ बरमूडा त्रिकोण के ऊपर रहस्यमय तरीके से गायब हो गया।
1948 में जहाज ट्यूडोर त्रिकोण में खो गया। इसका भी कुछ पता नहीं। (डीसी-3)
1950 में अमेरिकी जहाज एसएस सैंड्रा यहां से गुजरा, लेकिन कहां गया कुछ पता नहीं।
1952 में ब्रिटिश जहाज अटलांटिक में विलीन हो गया। 33 लोग मारे गए, किसी का शव तक नहीं मिला।
1962 में अमेरिकी सेना का केबी-50 टैंकर प्लेन बरमूडा त्रिकोण के ऊपर से गुजरते वक्त अचानक लापता हुआ।
1972 में जर्मनी का एक जहाज त्रिकोण में घुसते ही डूब गया। इस जहाज़ का भार 20 हज़ार टन था।
1997 में जर्मनी का विमान बरमूडा त्रिकोण में घुसते ही कहां गया, कुछ पता नहीं।
द मैरी सैलेस्ट : बरमूडा त्रिकोण से जुड़ी सबसे अधिक रहस्यमय घटना को `मैरी सैलेस्ट´ नामक जहाज के साथ जोड़कर देखा जाता है। 5 नवम्बर, 1872 को यह जहाज न्यूयॉर्क से जिनोआ के लिए चला, लेकिन वहां कभी नहीं पहुंच पाया। बाद में ठीक एक माह के उपरान्त 5 दिसम्बर, 1872 को यह जहाज़ अटलांटिक महासागर में सही-सलामत हालत में मिला, परन्तु इस पर एक भी व्यक्ति नहीं था। अन्दर खाने की मेज सजी हुई थी, किन्तु खाने वाला कोई न था। इस पर सवार सभी व्यक्ति कहां चले गए? खाने की मेज किसने, कब और क्यों लगाई? ये सभी सवाल आज तक एक अनसुलझी पहेली ही बने हुए हैं।
फ्लाइट 19 : इसी प्रकार अमेरिकी नौसेना में टारपीडो बमवर्षक विमानों के दस्ते फ्लाइट 19 के पांच विमानों ने 5 दिसम्बर, 1945 को लेफ्टिनेंट चार्ल्स टेलर के नेतृत्व में 14 लोगों के साथ `फोर्ट लॉडरडेल´, फ्लोरिडा से इस क्षेत्र के ऊपर उड़ान भरी और फिर ये लोग कभी वापिस नहीं लौट सके जिसमें पांच तारपीडो यान नष्ट हो गए थे। इस स्थान पर पहुंचने पर लेफ्टिनेंट टेलर के कंपास ने काम करना बंद कर दिया था। `फ्लाइट 19´ के रेडियो से जो अन्तिम शब्द सुने गए वे थे, 'हमें नहीं पता हम कहां हैं, सब कुछ गलत हो गया है, पानी हरा है और कुछ भी सही होता नज़र नहीं आ रहा है। समुद्र वैसा नहीं दिखता जैसा कि दिखना चाहिए। हम नहीं जानते कि पश्चिम किस दिशा में है। हमें कोई भी दिशा समझ में नहीं आ रही है। हमें अपने अड्डे से 225 मील उत्तर पूर्व में होना चाहिए, लेकिन ऐसा लगता है कि.... और उसके बाद आवाज आनी बंद हो गई।'